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बुधवार, 21 मार्च 2018

प्रभु राखें भक्तन की लाज


" चंद लमहे सुकून से, गुज़ार लूं तो चलूँ
ऐ मुहब्बत तुझे दिल से, पुकार लूं तो चलूँ "

अवध की संस्कृति को अपने साहित्यसृजन का केन्द्रीय विषय बनाने वाले "डॉ.योगेश प्रवीन" का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है.


डॉ.साहब की एक पुस्तक है "आपका लखनऊ" इसके नामकरण का राज उन्हीं के शब्दों में :- "जिस सुहानी धूपछाँव का नाम 'लखनऊ' है उसके प्यार का पैगाम आप सबके नाम है, इसलिए लखनऊ पहले हमारा नहीं है हमसे पहले आप का है - "आपका लखनऊ"

अपनी 250 से अधिक पृष्ठों में व्याप्त इस पुस्तक में लखनऊ के इतिहास से लेकर वर्तमान तक को समेटा गया है. क्या कला, क्या हस्तशिल्प, क्या गीत-संगीत, क्या पकवान और क्या तहजीब ; ऐसा कोई लखनवी पहलू नहीं जो इस किताब में समाहित ना हो.



इसी ग्रँथ में " यह आकाशवाणी लखनऊ है" नामक अध्याय भी है जिसमें लेखक ने रेडियो और लखनऊ आकाशवाणी केंद्र की महत्ता को रेखांकित किया है, इस अंदाजे-बयाँ पर गौर कीजियेगा जरा :-

" इस तरह जब लखनऊ आकाशवाणी का जन्म हुआ तो शहीदाने वतन अपने वतन पर निसार हो रहे थे. 02 अप्रैल 1938 की शाम पं. गोबिंदबल्लभ पन्त जी के हाथों लखनऊ रेडियो स्टेशन का उद्घाटन हुआ था और उस समय जो पहला गीत यहाँ से प्रसारित हुआ था, वह था..."प्रभु राखें भक्तन की लाज"

इस पुस्तक के प्रकाशक "लखनऊ महोत्सव पत्रिका समिति, लखनऊ" हैं, पहला संस्करण जो कि मैंने पढ़ा वर्ष 2002 में प्रकाशित हुआ था. लेख के शीर्षक में दिया हुआ कलाम डॉ.योगेश प्रवीन का है.


रविवार, 11 मार्च 2018

हरियाला रेडियो


रंगों के त्यौहार पर कुछ रंगीन होना ही चहिये तो यह हरा-भरा रेडियो ( Tivdio Radio HR 11S )खरीदा है. कुछ छोटी-मोटी बातें इस छोटू-मोटू के बारे में :-

1. यह तीन बैंड ( MW,SW(1-12)और FM) वर्ल्ड रिसीवर रेडियो है, तीनों बैंड की फ्रीक्वेंसी रेंज इस प्रकार है -
*MW - 522 से 1710 Khz
*SW - 3.0 से 23.0 Mhz
*FM - 64.0 से 108 Mhz
DSP चिप होने से सिग्नल पकड़ने की अच्छी गुणवत्ता है. डिजिटल डिस्प्ले है.


2.MP3 प्लेयर ( 32 GBमेमोरी कार्ड सपोर्ट ). ब्लूटूथ है जिससे आप गाने भी सुन सकते हैं और फोन कॉल का जवाब भी दे सकते हैं.
3. ऑटोमैटिक ट्यूनिंग और ऑटोमैटिक / मैन्युअल रेडियो स्टेशन सुरक्षित कर सकते हैं.
4. रेडियो / माइक/ लाइन-इन रिकॉर्डिंग.


निर्माता इसे आपातकालीन रेडियो कहते हैं तो इसके पीछे यह फीचर्स हैं -

5. इसमें रिचार्जेबल बैटरी है जिसे आप मोबाइल चार्जर से या धूप में इसी में लगे हुए सौर सेल से चार्ज कर सकते हैं, थोड़ी सी कसरत करने का मन हो तो हैंड क्रेंक घुमा-घुमा के भी इसे चार्ज किया जा सकता है.
6.बाजू में एक टार्च भी है. संकेत देने के लिए एक लाल संकेतक भी है और एक अलर्ट सायरन भी है.
7. मोबाइल फोन भी रेडियो की बैटरी या सोलर सेल या हैंडक्रेंक से चार्ज किया जा सकता है.
8. घड़ी, कैलेंडर, अलार्म और टाइमर तो खैर हैं ही.
 तब तक हम जरा देखते हैं कि कौन सा स्टेशन अभी क्या प्रसारित कर रहा है !!


शनिवार, 8 जुलाई 2017

// तिरंगा अचार //


"करौंदा गाजर हरीमिर्च की झंकार 

अब है लो आपके चखने को तैयार"


यह मिश्रित अचार है . बरसात के मौसम में इसका तीखा-चटपटा स्वाद खाने के जायके को बढ़ा देता है. सरलता से बनाया जा सकता है और 3-4 माह तक उपभोग किया जा सकता है . इसे बनाने के लिए आपको चाहिए :-

आवश्यक सामग्री :-


1. करौंदा : 250 ग्राम
2. गाजर : 150 ग्राम
3. हरी मिर्च : 100 ग्राम
4. सरसों तेल : 100 ग्राम
5. सरसों (राई) दाल : 30 ग्राम
6.मैथी/ साबुत धनिया / सौंफ / जीरा/ पिसी हल्दी / पिसी लाल मिर्च : प्रत्येक 10 ग्राम
7.कलौंजी/ अजवाइन/कालीमिर्च / लौंग : प्रत्येक 5 ग्राम
8.नमक : 60-65 ग्राम
9. सफेद सिरका : 100 मिलीलीटर
10.हींग :- 1 चुटकी

तैयारी :-

1. करौंदो को बीच में से खड़ा काट कर बीज निकाल दें. गाजर को छील लें. हरीमिर्च के डंठल अलग कर लें.
2. गाजर और हरीमिर्च को समान आकार के टुकड़ों में काट लें और आपस में मिला लें .
3. मैथी/ साबुत धनिया / सौंफ / जीरा को मोटा-दरदरा पीस लें और इसे हींग/ सरसों (राई) दाल, पिसी हल्दी / पिसी लाल मिर्च, कलौंजी/ अजवाइन/कालीमिर्च / लौंग, नमक के साथ मिला कर एक सूखा अचार मसाला तैयार कर लें और एक सूखे-साफ़ बर्तन में अलग रख दें.

विधि :

1. एक गहरी कढ़ाही में सरसों का तेल कड़क गर्म (धुआं देने तक ) करें और आँच से उतार लें.
2.तेल से धुआं निकलना बंद होने पर ( अभी भी तेल मध्यम गर्म रहेगा, इसलिए सावधानीपूर्वक ) इसमें तैयार अचार मसाला अच्छे से मिला दें.
3.अब करौंदे , गाजर और हरीमिर्च को इस मिश्रण में अच्छे से मिला दें.
4. इसे कमरे के तापमान तक ठंडा होने दें.
5. इस मिश्रण में सफेद सिरका मिला दें.
6.आपका तिरंगा अचार तैयार है इसे किसी सूखे व साफ़, ढक्कनबंद बर्तन में भर लें.

विशेष :-
1.करौंदे काटते और बीज निकालते काले ना हों इसलिए इन्हें सादे पानी में डाल कर रखिये
2. बर्तन से अचार निकालते समय हमेशा सूखे व साफ़ चम्मच का प्रयोग करें, कोशिश करें कि अचार के साथ कम से कम तेल आए. ऐसा करने से अचार लम्बे समय तक सुरक्षित रहेगा.
3. अचार तत्काल उपयोग कर सकते हैं फिर भी 3-4 दिन तक अगर इसे गलने दें तो और भी अच्छा स्वाद उभरेगा.
4..आजकल बाजार में तैयार अचार मसाला मिलता है आप उसे भी पैकेट पर दी हुई विधि के अनुसार उपयोग कर सकते हैं. इस स्थिति में आपको लौंग, कलौंजी,अजवायन और कालीमिर्च ही और चाहिए बाकी विधि वही रहेगी.

बनाकर बताइयेगा कैसा लगा :)

© डॉ. अमित कुमार नेमा



मंगलवार, 30 मई 2017

बलात्कार और बलात्कारी ?



गर आप सोचते/सोचती हैं कि पुलिस में दर्ज प्रत्येक बलात्कार का मामला वास्तव में सत्य है तो मुझे आपकी बुद्धि पर तरस आता है.

यहाँ अक्सर कुछ पोस्ट दिखती हैं जिनमें पूछा गया होता है कि " आपके हिसाब से बलात्कारी को क्या सजा मिलनी/दी जानी चाहिए ? " इस प्रश्न के एक से बढ़कर एक उत्तर दिए जाते हैं. कोई कहता है:"लिंग काट दिया जाना चाहिए", कोई "मृत्युदंड दिया जाना चाहिए" तो किसी का कहना होता है "जिंदा खाल खींच ली जानी चाहिए" आदि-आदि.

यक्षप्रश्न यह है कि आप आखिर किसे बलात्कार और बलात्कारी कहेंगे ?
क्या उसे 'जिसके विरुद्ध किसी महिला ने पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करा दी हो फिर चाहे वह सच्ची हो या झूठी ?'




" शारीरिक संबंध बनाने की आजादी " आधुनिक स्त्री विमर्श का एक अहम मुद्दा है, इसका आनंद दोनों लेते हैं इसीलिये तो इसे संभोग जैसे अलंकारिक शब्द से विभूषित किया गया है। लेकिन किसी उद्देश्य की पूर्ति ना हो पाने पर या विद्वेषवश पुरुष को झूठे बलात्कार के आरोप में फंसा दिया जाता है !

मान-प्रतिष्ठा क्या मात्र स्त्री की होती है ? ऐसे किसी भी झूठे मामले में फँसे पुरुष का परिवार जो सामाजिक,मानसिक व आर्थिक त्रास झेलता है वह अकथनीय है.

निर्भया ( ईश्वर उसकी आत्मा को शांति प्रदान करें ) कांड के बाद हमारे देश में ऐसे झूठे मुकदमों का सैलाब आया हुआ है. सनद रहे 'दिल्ली महिला आयोग' के अनुसार अप्रैल2013 से जुलाई2014 तक दर्ज ऐसे मामलों में से 53.2% मामले झूठे पाए गये थे.


बुधवार, 24 मई 2017

किरकिचयाऊ


बुंदेली बोली में कहासुनी, तकरार को "किरकिच" कहा जाता है. छायाचित्र में यह जो लाल-नारंगी-पीले फूलों वाली वनस्पति आप देख रहे हैं उसे ही हमारे यहाँ "किरकिचयाऊ" कहते हैं यानि "झगड़ा कराने वाली". कहा जाता है कि इसे जिस घर में डाल दिया जाये उस घर में विवाद हो जाता है.




यह कुछ अतिश्योक्तिपूर्ण कथन है.हालाँकि जिज्ञासावश इसका कारण जानने पर पाया कि इसमें आंशिक सत्यता हो सकती है. जो निष्कर्ष हमने निकाला वह यह है कि यह पौधा पूरा विषाक्त होता है और कुछ यूँ हुआ होगा कि कभी घर में किसी ने इसके फूलों की सुंदरता के कारण सजावट हेतु रखा होगा और किसी बच्चे ने इसे खाने वाली चीज समझ कर खा लिया होगा.बच्चे की तबीयत बिगड़ने का जिम्मेदार इसे लाने वाले को समझकर परिवार के सदस्यों में तू-तू मैं-मैं हो गई होगी ( सम्भवतः जेठानी-देवरानी में ) मतलब कि "किरकिच" हो गई होगी और इस पादप का यह दिलचस्प नामकरण हो गया.


वैसे इसका नाम हिंदी में "कलिहारी", अंग्रेजी में "फायर लिली" , वैज्ञानिक "ग्लोरियोसा सुपर्बा" है. यह एक आयुर्वेदिक औषधि है. खेत की मेड पर लगा हुआ पाया गया.

छायाचित्र: डॉ.अमित कुमार नेमा 








बुधवार, 10 मई 2017

परियों का जन्म




स शाम हवा उदास थी, पत्ता-पत्ता उदास था और वो दोनों भी उदास थे लेकिन आनंद ने जब परी के मुरझाये चेहरे को देखा तो उससे रहा नहीं गया उसे लगा कि अंदर कहीं कोई पैना सा नाखून लगातार खरोंचे जा रहा है इस चुभन को मिटाने उसने कहा :-

" सुनो "
परी ने अपनी भावशून्य नजरें उस पर स्थिर कर दीं
" क्या तुम्हें पता है परियों का जन्म कैसे हुआ ? "


परी की आँखों में अनभिज्ञता और प्रश्न का भाव उभर आया, आनंद ने इशारा समझ लिया

" मैं बताता हूँ "
" जब सूरज की पहली किरण बर्फ से ढके पहाड़ों से टकराई तो वो सात रंगो में बिखर गई हरेक रंग से एक परी बनी, जब नदी पहली बार बही उसकी धारा की हरेक कलकल से एक परी बनी, जब कली पहली बार खिली उसकी खुशबू के हरेक कतरे से एक परी बनी और जब बच्चा पहली बार हंसा तो उसकी किलकारी मोतियों में बदल गई हरेक मोती से एक परी बनी "

परी के होंठों पर एक मुस्कान कौंध के चली गई, आनंद को चुभन कुछ कम सी होती लगी.....

( लिखी जा रही एक कहानी से - © डॉ. अमित कुमार नेमा,  चित्र: साभार - गूगल छवियाँ )





शुक्रवार, 3 जून 2016

इसका नाम प्रेम है


" यह विचित्र है 
इसका नाम प्रेम है

यह सहसा ही उपज
जाता है प्रयासहीन
कोई नहीं जानता हो जाए
कब कहाँ क्यों कैसे किस से


यह विचित्र है
इसका नाम प्रेम है




यह चमत्कारी
बड़ा चतुर सुजान है
एक मुस्कान के बदले
वसूलता अनेक विलाप है

यह विचित्र है
इसका नाम प्रेम है....
."

© डॉ. अमित कुमार नेमा