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गुरुवार, 30 जनवरी 2014

अराजकता बनाम सत्याग्रह

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"सार्वजनिक जीवन में पाखंड का बढ़ना भी खतरनाक है। चुनाव किसी व्यक्ति को भ्रांतिपूर्ण अवधारणाओं को आजमाने की अनुमति नहीं देते हैं। जो लोग मतदाताओं का भरोसा चाहते हैंउन्हें केवल वही वादा करना चाहिए जो संभव है। सरकार कोई परोपकारी निकाय नहीं है। लोकलुभावन अराजकताशासन का विकल्प नहीं हो सकती,झूठे वायदों की परिणति मोहभंग में होती हैजिससे क्रोध भड़कता है तथा इस क्रोध का एक ही स्वाभाविक निशाना होता है : सत्ताधारी वर्ग । "गणतंत्र दिवस 2014 की पूर्व संध्या पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का राष्ट्र के नाम संदेश से एक अंश  )




दांडी नमक सत्याग्रह यात्रा 

     पिछले दिनों एक शब्द बहुत चर्चा में रहा, राष्ट्रपति से लेकर राहगीर तक की जुबान पर रहा,  विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने तरीके से इसका विश्लेष्ण किया और कमोबेश अभी भी है वह है  "अराजकता", यह शब्द गूंजा दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री केजरीवाल  के धरने के बाद जिसमें एक बयान में उन्होंने यहाँ तक कह डाला कि  
"कुछ लोग कहते हैं मैं अराजक हूँ और अव्यवस्था फैला रहा हूँ. मैं सहमत हूँ कि मैं अराजक हूँ. मैं भारत का सबसे बड़ा अराजकतावादी हूँ."
     आखिर ये अराजकतावाद  ( Anarchism ) है क्या बला ? , जनमानस इस शब्द से अर्थ निकालता है " धरना, प्रदर्शन, हड़ताल, चक्काजाम, तोड़-फोड़ वगैरह-वगैरह ; और परिभाषा  की बात करें तो यह राजनैतिक दर्शन का क्षेत्र है जिसके अनुसार  "यह  राजनीति विज्ञान की वह विचारधारा है जिसमें राज्य की उपस्थिति को अनावश्यक माना जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी तरह की सरकार अवांछनीय है। लेकिन  इस विचारधारा का अमली रूप एक उच्च सामाजिक मनोदशा है जिसमें समाज स्वत: नियमन का पालन करता है और किसी भी किस्म की शासन-व्यवस्था की जरूरत नहीं होती जो तभी सम्भव है जब मानव अपने व्यवहार की आदर्शावस्था को प्राप्त हो जाये जिसकी गुंजाईश फ़िलहाल दूर-दूर तक नहीं दिखाई देती | "अराजकता" और "अराजकतावाद"  कोई नवीन वस्तु नहीं है, इसको लेकर भी विभिन्न राजनीतिज्ञों के अपने-अपने विचार हैं | 

डॉ. बी.आर.अम्बेडकर के अनुसार
  " भारत को सामाजिक और आर्थिक उद्देश्यों को पाने के लिए क्रांति के रक्तरंजित तरीकों, सविनय अवज्ञा, असहयोग और सत्याग्रह का रास्ता छोड़ देना चाहिए.जहाँ संवैधानिक रास्ते खुले हों, वहाँ असंवैधानिक तरीकों को सही नहीं ठहराया जा सकता है. यह तरीके और कुछ नहीं केवल अराजकता भर हैं और इन्हें जितना जल्दी छोड़ दिया जाए, हमारे लिए उतना ही बेहतर है." 
     हम यहाँ देखते हैं कि डॉ. अम्बेडकर ने असहमति प्रकट करने के सशस्त्र और नि:शस्त्र दोनों ही तरीकों को अराजकता कहा है | उपरोक्त व्यक्तव्य में तीन ऐंसे शब्दों का उपयोग हुआ है जिनको सीधे-सीधे महात्मा गाँधी से जोड़कर ही देखा जाता है  'सविनय अवज्ञा, असहयोग और सत्याग्रह' कहीं कहीं पर ऐंसा भी देखने में आता है जहाँ गाँधीजी को अराजकतावाद का पैरोकार कहा जाता है उदाहरण हेतु  जार्ज वुडकॉक जैसे अराजकतावादी विचारकों का दावा है कि गांधीजी स्व-परिचित ( Self Identified ) अराजकतावादी हैं वह गाँधीजी के इस बयान को आधार बनाकर यह बात कहते हैं    " सामाजिक बुराइयों का प्रभाव  राज्य रूपी बुराई में नजर आता है जो स्वत: कोई कारण नहीं है, जिस प्रकार  लहरें , तूफ़ान का प्रभाव हैं कारण नहीं , इस रोग के उपचार का एकमात्र तरीका है कारण को समाप्त कर देना "   तो जब यहाँ गाँधीजी कारण को समाप्त करने की बात करते हैं तो उनका आशय है सामाजिक बुराइयों को समाप्त करना ना कि  "राज्य" को समाप्त करना | क्योंकि गाँधीजी ने अपने असहमति प्रकट करने के कार्यक्रमों के दौरान कभी राज्य का नाश नहीं चाहा, वह तो यह चाहते थे कि साम्राज्यवाद के चँगुल से मुक्त होकर भारत स्वराज को प्राप्त हो |  महात्मा गांधी कहते हैं :  
' राज्य तभी पूर्ण और अहिंसक हो सकता है , जब जनता पर न्यूनतम शासन हो, अहिंसात्मक लोकतंत्र ही शुद्ध अराजकता का निकटतम विकल्प है ' 
     महात्मा गांधी ने अपने राजनीतिक जीवन में इन तीनों ( सविनय अवज्ञा, असहयोग और सत्याग्रह) का भरपूर उपयोग किया है और बहुधा सकारात्मक परिणाम भी पाया है | उनकी विधियाँ समय की कसौटी पर खरी उतरीं है , अन्य नेताओं यथा मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला ने भी इनका सफल प्रयोग कर इनकी शाश्वतता सिद्ध की है | इन तीनों तरीकों का अपना नियम-सिद्धांत है , सत्याग्रह क्या है ? कैसे किया जाना है ? इसका बाकायदा लिखित प्रारूप है |  गांधी जी कहते हैं कि : 
" सत्याग्रह कोई नई बात नहीं है, यह एक ऐंसा सिक्का है जिसके ऊपर सत्य, प्रेम और शांति का संदेश अंकित किया गया है | यह मात्र सत्य का आग्रह ही नहीं है परन्तु अनाकरण सत्य की खोज और सत्य के पालन का संकल्प है | सत्य के अलावा अहिंसा और असहयोग इसके मूलतत्व हैं | यह हर तरह की हिंसा के खिलाफ है चाहे वह प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष, आवरण में हो या अनावरित हो | इसका मूलमंत्र है कि अपने प्रतिद्वंदी के प्रति मन में कोई दुर्भावना नहीं रखनी चाहिये या उसे किसी भी प्रकार से नुकसान पहुँचाने का विचार मन में नहीं आना चाहिये | यह धर्मयुद्ध है जिसके लिए न तो झूठ और न ही कुछ छल-कपट हो, सभी प्रयास पारदर्शी होने चाहिये | सत्याग्रही को प्रेम, सद्भावनापूर्ण और उत्साहवर्धक वातावरण का निर्माण करना चाहिये, ना कि भय या आतंक का | यदि दुराभाव से इसे किया जाये तो यह सत्याग्रह नहीं है और न ही इसकी सफलता सम्भव है | एक बड़े उद्देश्य से किया गया सत्याग्रह इस बात पर निर्भर नहीं होता कि उसमें कितनी संख्या है किन्तु उसकी सफलता उसकी गुणवत्ता पर निर्भर होती है , एक सच्चा सत्याग्रही किसी भी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त है | "
गाँधी जी इस से आगे बढकर सत्याग्रह की विधि ( प्रक्रिया ) में यह भी कहते हैं :
" धरना एक क्रूर, कायराना और तिरस्कृत कार्य है , यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है |"
      केजरीवाल साहब के धरना को सविनय अवज्ञा, असहयोग और सत्याग्रह नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह बहुजनहिताय बहुजनसुखाय की मूल भावना पर आधारित नहीं था | आपको समझना चाहिये था कि आप अब एक संवैधानिक पद पर हैं जिसकी अपनी गरिमा है , आप ने अपने एक सहयोगी का अनुचित बचाव करने के लिए यह घटनाक्रम आयोजित किया , यहाँ पर कुछ दशक पूर्व का एक प्रसंग पठनीय है :  बिहार में डॉ. श्रीकृष्ण सिंह मुख्यमंत्री हुआ करते थे। उन्होंने एक पढ़े-लिखे व्यक्ति को अपनी सरकार का कानून मंत्री बनाया था। कानून मंत्री बनते ही वे सज्जन  हाईकोर्ट पहुंचे और चीफ जस्टिस से कहा कि कल से आप और हाईकोर्ट के सारे जज मेरे ऑफिस में हाजिरी देंगे और जो मैं कहूंगा उसी के मुताबिक निर्णय देंगे। चीफ जस्टिस ने डॉ. श्रीकृष्ण सिंह को फोन कर कहा कि शायद आपका नया कानून मंत्री पगला गया है। उन्हें यह पता नहीं है कि उनकी इन हरकतों के कारण हम उन्हें जेल भेज सकते हैं। डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने कार भेजकर तुरन्त अपने कानून मंत्री को बुलाया और बड़ी फटकार लगाई और कहा कि कभी तो संविधान को पढ़िए। हाईकोर्ट के जज आपके अधीन नहीं हैं और ये जज जब चाहें कोर्ट की अवमानना के आरोप में आपको जेल भेज सकते हैं। कानून मंत्री को होश आ गया और मौके की नजाकत को देखकर तथा हाईकोर्ट के जजों का गुस्सा शांत करने के लिये डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने अपने कानून मंत्री को दूसरे ही दिन मंत्री पद से हटा दिया।

     श्री केजरीवाल की सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की इस राजनीति से आम जनता परेशान होने लगी, जिस जन-संग्रह की आशा आपने लगा रखी थी वह कुछ मौसम, कुछ मोहभंग के चलते निराशा में बदल गई   तो आप अपना यह नुक्कड़ नाटक छोड़कर वैकल्पिक मार्ग तलाश करने लगे, इस सब में क्या और कितना सत्य है यह तो आप ही जानते होंगे लेकिन आप को यह भी तो स्मरण रखना था कि अब आप एक राज्य के मुखिया होने के नाते  " लॉ एंड ऑर्डर " के अभिन्न अंग हैं , जब आप ही अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करेंगे तो आप नागरिकों से उनके मौलिक कर्तव्यों के पालन की उम्मीद कैसे संजो सकते हैं ? आम आदमी पार्टी का सियासी मुस्तक्बिल, अर्श पर होगा या फर्श पर यह तो भविष्य की पर्तों में छुपा है | लेकिन जन-सामान्य ने आपसे जो उम्मीदें संजोकर , आप में जो विश्वास जताया है उस पर तो खरे उतर कर दिखाइये, यह तो आम आदमी भी जानता है कि रातोंरात कोई करिश्मा होने से रहा पर कदम तो बढाइये.....................    

     चलते चलते दो बातें आपको बता दें अव्वल तो ये कि गाँधीजी ने अपने आदर्श राज्य की अवधारणा को  "रामराज्य " का नाम दिया और दूजी यह कि बापू का सामाजिक आन्दोलनकर्ता के रूप में प्रादुर्भाव तब हुआ जब 1893 में बारिस्टर गाँधीजी को प्रथम श्रेणी के डब्बे से यह कह कर फेंक दिया था कि यह गोरों के लिये है भले ही आपके पास वैधानिक टिकिट हो | आज बापू की पुण्यतिथि पर मेरी यह पाती उनको समर्पित करता हूँ 

 तब तक के लिये अनुमति दीजिये , कृपया मेरे प्रणाम स्वीकार करें ............ 


   

रविवार, 19 जनवरी 2014

दूरदर्शन : हमलोग - 2


मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा  




सर्वप्रथम तो  आप के द्वारा मेरा जो उत्साहवर्धन हुआ उसके लिये मेरे  हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करें |

              दूरदर्शन पर सामाजिक-मनोरंजक कार्यक्रमों का प्रसारण होने से यह परिवार के प्रत्येक आयु-वर्ग के सदस्यों का मनपसंद बन गया | एक और महत्वपूर्ण बात यह हुई कि इस तरह के प्रोग्रामों का प्रसारण होने से विभिन्न विधाओं के महारथी भी दूरदर्शन  की ओर आकर्षित हुये | हमने अपनी पिछली पाती में  "हमलोग" और "बुनियाद" की चर्चा की है | "हमलोग"  और  "बुनियाद " श्रंखला को  हिंदी के प्रसिद्ध लेखक, पत्रकार  "श्री मनोहर श्याम जोशी " ने लिखा था, इनको  "भारतीय सोप ऑपेरा का पिता " भी कहा जाता है , जबकि इन दोनों को क्रमश: " पी. विजयकुमार " और  शोले जैसी अमर फिल्म के निर्देशक  "रमेश सिप्पी" ने निर्देशित किया था | 

            धीरे धीरे दूरदर्शन की प्रसारण अवधि बढती गई , और यह न सिर्फ शाम को बल्कि सुबह, दोपहर और शाम को भी घरों में पहुँचने लगा | प्रसारण प्रारम्भ होने के पूर्व एक हस्ताक्षर धुन बजाई जाती थी | प्रत्येक प्रसारण सभा के प्रसारण के पूर्व दो वलयाकार रेखायें घूमते हुये दूरदर्शन का प्रतीक बनाती थी और पार्श्व में एक धुन बजती थी |  इस धुन को मुख्य रूप से मशहूर शहनाई वादक "उस्ताद अली अहमद हुसैन खान " साहब और  प्रसिद्ध सितार वादक  "पंडित रविशंकर" ने तैयार किया था | इसके पश्चात हमारे राष्ट्रीय गीत वन्देमातरम का गायन होता , लीजिए आगे बढ़ने के पहले एक बार सुन और देख लिया जाये : 



           
               यूँ तो हर दिन ही  दूरदर्शन का प्रसारण देखना दिनचर्या का हिस्सा बनाता जा रहा था , लेकिन रविवार की तो बात ही अलग थी , इतवार तो जैसे  दूरदर्शन  के नाम लिख दिया गया था , फिर चाहे वो सुबह सुबह  बागवानी का प्रोग्राम  "अंकुर" हो या फ़िल्मी गीतों की "रँगोली" | मर्यादा पुरुषोत्तम राम के बिना भारत के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती  डॉ. अल्लामा इकबाल ने कहा है  :
                        है राम के वजूद पे हिंदोस्तां को नाज़,
                        अहले-नजर समझते हैं उसको इमामे-हिन्द।
        और फिर सन 1987 ई. में गणतन्त्र दिवस के एक दिन पूर्व यानि 25 जनवरी को यह हकीकत एक बार फिर साबित हो गई जब दूरदर्शन  पर  " श्री रामानंद सागर "  द्वारा रामायण पर इसी नाम से बनाई गई श्रंखला का प्रसारण प्रारम्भ हुआ ,और दूरदर्शन भी राममय हो गया | टी.व्ही. सेट भी पूजन सामग्री बन गया, लोग जैसे मंदिर में देव-विग्रह के सामने हाथ जोड़ते हैं वैसे ही टी.व्ही सेट के सामने करबद्ध होने लगे  | दूरदर्शन मानो दिव्यता को प्राप्त हो गया , इस कालजयी कृति में श्रीराम की भूमिका निभाने वाले  "अरुण गोविल " और जानकी की भूमिका निभाने वाली दीपिका में लोगों को सीता-राम का साक्षात्कार होने लगा , हनुमान जी बने हुये दारा सिंह जन-सामान्य में हनुमान के ही स्वरूप बन गये | मुझे याद आता है कि प्रातः 09:30  पर सड़कों पर कर्फ्यू सा लग जाता था और घर की बैठक खचाखच भर जाती थी, एक एक संवाद को ईश्वरीय वाक्य समझ कर सुना जाता था | जब यह सीरीज प्रसारित हो चुकी उसके बाद इसकी वीडियो कैसेट आ गयी , बाद में वीडियो सी.डी. जिसे व्ही.सी.आर/व्ही.सी.पी. आदि पर बहुत दिनों तक इसे सार्वजनिक गणेशोत्सव - दुर्गोत्सव पर दिखाया जाता था और लोग बड़े चाव से इसे देखते थे |

       राम के बाद दूरदर्शन पर कृष्ण अवतरित हुये  बी.आर.चोपड़ा की "महाभारत" श्रंखला से और एक बार फिर टी.व्ही. को दिव्यता प्राप्त हुई | कहा जाता है कि एक जमाने में लोगों ने बाबू देवकीनंदन खत्री की चन्द्रकान्ता पढ़ने के लिये हिंदी सीखी थी अगर ये कहा जाये कि उपरोक्त दो टी.व्ही.सीरीज देखने के लिये बहुत लोगों ने टी.व्ही. सेट खरीदे तो कोई अतिशयोक्ति ना होगी | फिर रविवार की दोपहर क्षेत्रीय भाषा की फिल्म और शाम को एक हिंदी फीचर फिल्म |

       रविवार के प्रोग्रामों के इतर भी बहुत से कार्यक्रम पसंद किये जाते थे , यहाँ पर मैं नाम लेना चाहूँगा हिंदी-व्यंग के सशक्त हस्ताक्षर "श्री शरद जोशी" का ये दूरदर्शन से जुड़े और एक के बाद एक कई अच्छी रचनायें दूरदर्शन के लिये लिखीं जिनमे से कुछ प्रमुख हैं :- श्याम तेरे कितने नाम, ये जो है जिंदगी , दाने अनार के , ये दुनिया गजब की, गुलदस्ता आदि, इनमें से एक "ये दुनिया गजब की" में हास्य रस के कवि और अभिनेता शैल चतुर्वेदी ने भी अभिनय किया था | सप्ताह में दो बार आने वाला फ़िल्मी गानों का कार्यक्रम "चित्रहार" भी अच्छा खासा लोकप्रिय था , और "सुरभि" में पूछे जाने वाले सवाल के उत्तर में तो लाखों पोस्टकार्ड पहुँचते थे , यहाँ तक कि भारतीय डाक विभाग ने प्रतियोगिता पोस्टकार्ड तक जारी कर दिया |  

            राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिये 15 अगस्त 1988 को लाल किले से प्रधानमंत्री के भाषण के बाद पहले पहल प्रसारित मिले सुर मेरा तुम्हारा भी जल्दी ही हर खासो-आम की जुबाँ पर चढ़ गया | अपनी तरह के अनूठे इस गीत में 14 भारतीय भाषायें हैं और इसे मिलकर गाया है अपने अपने क्षेत्र की नामचीन 41 हस्तियों ने,   इसे लिखा है  "पीयूष पाण्डेय " ने , यह इतना अनोखा है कि 22 वर्ष बाद इसका एक और संस्करण "फिर मिले सुर मेरा तुम्हारा " बनाया गया | आइये हम पुराना वाला गीत एक बार सुनकर ताज़ादम हो लें :


        

         1992 में भारतीय परिदृश्य पर दूरदर्शन के अतिरिक्त अन्य उपग्रह चैनल भी आ गये |   दूरदर्शन ने भी 16  दिसम्बर 2004 से नि:शुल्क डीटीएच सेवा डीडी डाइरेक्‍ट + की शुरूआत की और आज दूरदर्शन के लगभग 30 चैनल है जिनमें शामिल हैं :
  • राष्‍ट्रीय चैनल (5): डीडी 1, डीडी न्‍यूज़, डीडी भारती, डीडी स्‍पोर्ट्स और डीडी उर्दू
  • क्षेत्रीय भाषाओं के उपग्रह चैनल (11): डीडी उत्तर पूर्व, डीडी बंगाली, डीडी गुजराती, डीडी कन्‍नड़, डीडी कश्‍मीर, डीडी मलयालम, डीडी सहयाद्रि, डीडी उडिया, डीडी पंजाबी, डीडी पोधीगई और डीडी सप्‍‍तगिरी
  • क्षेत्रीय राज्‍य नेटवर्क (11): बिहार, झारखण्‍ड, छत्तीसगढ़, मध्‍य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखण्‍ड, हिमाचल प्रदेश, राजस्‍थान, मिजोरम और त्रिपुरा
  • अंतरराष्‍ट्रीय चैनल (1): डीडी इंडिया
  • संसदीय चैनल (2) : लोकसभा टी.व्ही. और राज्यसभा टी.व्ही.  
               दूरदर्शन के राष्‍ट्रीय नेटवर्क में 64 दूरदर्शन केन्‍द्र / निर्माण केन्‍द्र, 24 क्षेत्रीय समाचार एकक, 126 दूरदर्शन रखरखाव केन्द्र, 202 उच्‍च शक्ति ट्रांसमीटर, 828 लो पावर ट्रांसमीटर, 351 अल्‍पशक्ति ट्रांसमीटर, 18 ट्रांसपोंडर, 30 चैनल तथा डीटीएच सेवा आती है। विभिन्‍न सवर्गों में 21708 अधिकारियों तथा कर्मचारियों के पद स्‍वीकृत हैं। किन्तु इसमें आधे के करीब रिक्त हैं, क्योंकि इसे आवंटित होने वाला बजट पर्याप्त नहीं है | जिसका सीधा असर दूरदर्शन की गुणवत्ता की कमी में देखा जा सकता है | किन्तु यह सब होने के बावजूद आज भी दूरदर्शन अपनी सरकारी भोंपू के ठप्पे से मुक्त नहीं हो पाया | आज भी दूरदर्शन समूचे भारत का समाचार-विचार और सांस्कृतिक संबंधो के कार्यक्रमों का एक मात्र प्रसारक है | अपनी जड़ों की तरफ लौटने, जड़ों से जोड़ने, उस पर संवाद करने की , और सही मायने में जनमाध्यम बनने की ताकत आज भी दूरदर्शन में ही है। आज जहाँ दूरदर्शन के प्रसारणों को विश्व के 146 देशों में देखा जा सकता है , वहाँ आवश्यकता है कि दूरदर्शन, बी.बी.सी. जैसा कोई तरीका अपना कर अपने स्वतंत्र अस्तित्व की घोषणा करे | जनता की नब्ज को पहचाने और अरचनात्मक रुढिवादी नौकरशाही शिकंजे से मुक्त होकर सच्चे अर्थों में जनता का संचार माध्यम बने , भारतीय प्रजा की आवाज़ बने | आशा है परिवर्तनों के दौर में दूरदर्शन भी नये कलेवर में जलवाअफरोज़ होगा |

             चलते चलते आपको दो बातें बता दें कि लोकप्रिय सिने-सितारे शाहरुख खान ने अपनी अभिनय यात्रा छोटे पर्दे यानि दूरदर्शन से ही धारावाहिक "सर्कस" और "फौजी" से शुरू की थी | दूरदर्शन पर "सरब सांझी गुरबानी " पहला प्रायोजित कार्यक्रम था जिसे प्रायोजित किया था " टेक्सला टी.व्ही." ने |

तब तक के लिये अनुमति दीजिये , कृपया मेरे प्रणाम स्वीकार करें ............




गुरुवार, 9 जनवरी 2014

दूरदर्शन : हमलोग - 1

रामायण, महाभारत, हमलोग और बुनियाद 



                     नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाओं के साथ आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप मुझे भूले ना होंगे, हम अपनी पिछली पाती मे लिखते आये हैं कि 1976 तक हमारे देश में टी.व्ही. प्रसारण सेवा  "आकाशवाणी" का ही एक अंग था | जी हाँ ये बिलकुल सच है , वैसे तो टी.व्ही. प्रसारण सेवा का आरम्भ इससे बहुत पहले ही हो चुका था, लेकिन कैसे हुआ ये जानना भी कोई कम रोचक नहीं तो आइये चलते हैं पिछली शताब्दी मे और जानते हैं कि यह आगाज़ कैसे हुआ :

          यह साल था 1959 ई. जब फिलिप्स ( इण्डिया ) ने हमारे देश की एक प्रदर्शनी मे , अपने एक टेलीविजन 
( आगे जिसे हम टी.व्ही. कहेंगे ) ट्रांसमीटर का प्रदर्शन किया और भारत सरकार के सामने इसे कम कीमत पर उपलब्ध करवाने के प्रस्ताव रखा | सरकार ने " कार्मिकों को प्रशिक्षित करने, और आंशिक रूप से यह जानने के लिये कि सामुदायिक विकास और औपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में टी.व्ही. क्या हासिल कर सकता है ? " इन उद्देश्यों को लेकर इसे शुरू करने का निर्णय लिया | यूनेस्को द्वारा सामुदायिक रिसिव्हर हेतु दिये गये 20,000 अमरीकी डॉलर के अनुदान और अमरीका द्वारा उपलब्ध करवाये गये कुछ उपकरणों से प्रायोगिक तौर पर 15 सितम्बर 1959 को नई दिल्ली के विज्ञानं भवन से तत्कालीन राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद जी ने इसका औपचारिक उद्घाटन किया | उस समय दिल्ली के आस-पास की 40 किलोमीटर की परास मे, सप्ताह मे तीन दिन आधा या एक घंटे के लिये इसके कार्यक्रमों का प्रसारण देखा जा सकता था | अब यहाँ ये प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि : 
                                        इसको देखता कौन था ?

                    इन कार्यक्रमों को देखने के लिये दिल्ली के अड़ोस-पडोस के गाँवों में लगभग 180 टेली-क्लब की बनाये गये जहाँ ये कार्यक्रम सामूहिक रूप से देखे जा सकते थे | लगभग 2 साल बाद 1961 ई. में हुये एक सर्वेक्षण से यह बात सामने आई की इसका समाज पर प्रभाव हुआ है | नियमित रूप से दैनिक प्रसारण 1965 ई. में प्रारंभ हुआ, और इसी समय इसके कार्यक्रमों में मनोरंजक और सूचनात्मक प्रोग्राम शामिल किये गये, लेकिन अवधि वही थी एक घंटा, साल 1967 ई. के गणतन्त्र दिवस से इसमें 20 मिनिट का एक साप्ताहिक कार्यक्रम “कृषिदर्शन” जोड़ा गया | प्रसारण अवधि मई 1969 ई. में दो घंटे और जुलाई 1970 ई. में बढकर 3 घंटे हो गई, इसी साल के दिसम्बर में साढ़े तीन घंटे हो गई | 1972 ई. में टी.व्ही. प्रसारण “ आमची मुंबई ” तक जा पहुँचा , अपनी शुरुआत से लेकर लगभग 13 वर्षों में टी.व्ही. प्रसारण सेवा हमारे देश के दो महानगरों तक ही सीमित था, इसी साल के अंतिम हिस्से में यह अमृतसर तक अपनी दस्तक दे रहा था | 1973 ई. के 14 नवम्बर को प्रसारण अवधि को चार घंटे कर दिया गया शाम के 6 से रात्रि 10 बजे तक, 1975 ई. में  टी.व्ही. प्रसारण सेवा की पहुँच देश के सात शहरों तक हो गई | अभी तक यह टी.व्ही. प्रसारण सेवा “आकाशवाणी” के टेलीविजन विंग के रूप में ही कार्यरत था किन्तु 01 अप्रैल 1976 ई. को इसे आकाशवाणी से पृथक करके इस नई संस्था को “दूरदर्शन” नाम दिया गया | नवम्बर 1981 से प्रसारण अवधि साढ़े चार घंटे हो गई ,1982 ई. के एशियाई खेलों से दूरदर्शन पर “राष्ट्रीय कार्यक्रम” का प्रसारण शुरू हुआ, अभी तक हमारा दूरदर्शन श्वेत-श्याम ( Black & White ) ही था जो अब रंगीन नज़ारों से भर गया, वर्ष 1984 में दूरदर्शन ने राष्ट्रव्यापी पहुँच हेतु अपनी महत्वाकांक्षी योजना “ एक ट्रांसमीटर प्रतिदिन (One-Transmitter-a-Day ) प्रारम्भ की | 



              मध्यप्रदेश के सागर जिला मुख्यालय में भी ट्रांसमीटर स्थापित किया गया जिससे हमारे कस्बे “रहली” में भी दूरदर्शन पहुँच गया, तब मैं चार साल का था और मुझे उस समय की हल्की हल्की स्मृति है | हमारे घर भी टी.व्ही. सेट आया वो टेक्सला कम्पनी का एक श्वेत-श्याम टी.व्ही. सेट था ,जो लकड़ी की बनी हुई केबिनेट में था और लकड़ी का ही शटर भी था जिसको थोड़ा सा रंगीन पुट देने के लिये इसकी स्क्रीन पर नीली पारदर्शी प्लास्टिक का कवर लगाया गया था | हम में से जिनको उस समय की याद होगी वो भलीभाँति जानते होंगे कि उस समय छत पर एक बूस्टर युक्त एंटीना लगाया जाता था जो तेज हवा से अक्सर घूम जाता था और टी.व्ही सेट पर सिग्नल आना बंद हो जाते थे तब छत पर जाकर एंटीना की स्थिति सुधारना पड़ती थी | सिग्नल भी कमजोर होते थे जिनको सुधारने के लिये दो बूस्टर लगाये जाते थे, एक तो एंटीना के साथ और दूसरा टी.व्ही.सेट के साथ और वोल्टेज की उछल-कूद से टी.व्ही.सेट भस्म न हो जाये इसलिये एक वोल्टेज स्टेबलाइजर | और कुछ ऐंसा दिखता था हमारा यह टी.व्ही.सेट :




             इसी साल एक बड़ा मकबूल सोप ऑपेरा प्रसारित होना शुरू हुआ  " हम लोग "  | इसी वर्ष ही  तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या हो गई , और उनके अंतिम संस्कार का प्रसारण  दूरदर्शन पर किया गया , साथ में उनके अंतिम भाषण का प्रसारण किया जाता था , मुझे याद है कि इसे देखने के लिये मेरे नगर के चौक पर 3-4 टी.व्ही.सेट लगाए गये थे | अगले ही साल हमारे घर में रंगीन  टी.व्ही. सेट आ गया जो ऑरसन कंपनी का था, तो अब हम लोग रंगीन हो गये, और साहब यह धारावाहिक दूरदर्शन का एक अहमतरीन कदम साबित हुआ , मैं अपनी बात को इस उद्धरण के माध्यम से कहना चाहूँगा : 



          मेरे ख्याल से इस उद्धरण के बाद इसके बारे में और कुछ कहने की जरूरत नहीं, इससे अगले साल यानि 1986 ई. से शुरू हुआ  " बुनियाद " , कुछ याद आया आपको , मुझे आप पता है आप मुस्कुरा रहे हैं , जी हाँ 
 " हवेलीराम " अब मैं आपको मुस्कुराहट की एक और वजह देता हूँ , दूरदर्शन 27 साल बाद फिर से इस धारावाहिक का प्रसारण प्रारम्भ कर रहा है | ये देखिये : 
                  तो अगर आपने पहले ना देखा हो तो अब देखना ना भूलियेगा |  भारत और पाकिस्तान के विभाजन की कहानी पर बना 'बुनियाद' जिसने विभाजन की त्रासदी को उस दौर की पीढ़ी से परीचित कराया। इस धारावाहिक के सभी किरदार आलोक नाथ  ( मास्‍टर हवेलीराम  जी), अनीता कंवर ( लाजो जी), विनोद नागपाल, दिव्या सेठ को और इनके बेहतरीन अभिनय को | इरादा था इस विषय को एक ही चिट्ठे में समेटने का पर अब लिखना शुरू किया तो बहुत सी बातें याद आती जा रही हैं लेकिन फिर यह पाती कुछ बोझिल हो जायेगी इसलिये अपनी लेखनी को यहीं विराम देता हूँ  लेकिन आप से वादा है कि अगले पत्र में आपको कुछ और रोचक इतिहास बताऊंगा उस दौर का जब चलता था दूरदर्शन का राज |


             चलते चलते आपको दो बातें बता दें कि दूरदर्शन विश्व में पहला प्रसारक था जिसने सामाजिक शिक्षा के लिये उपग्रह का उपयोग किया, इसके लिये दूरदर्शन ने नासा ( NASA ) से ए.टी.एस.६ नामक उपग्रह एक वर्ष के लिये किराये पर लिया था | और दूसरी यह कि यह पाती लिखते हुये मैं विविध भारती पर अभी कुछ दिन पहले हमारे बीच से चले गये अज़ीम अभिनेता फारुख शेख साहब का निम्मी मिश्रा द्वारा लिया हुआ साक्षात्कार " पिटारा- आज के मेहमान " कार्यक्रम में सुन रहा था जिसमें उन्होंने आकाशवाणी और दूरदर्शन का महत्व बाखूबी रेखांकित किया |

तब तक के लिये अनुमति दीजिये , कृपया मेरे प्रणाम स्वीकार करें ............