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गुरुवार, 7 अगस्त 2014

सुनो मन अब यह कर लो निश्चय

:: कविता ::



सुनो मन अब यह कर लो निश्चय


" सुनो मन अब यह कर लो निश्चय,
न होगे विचलित,मिले जय-पराजय । 

अब टूट चला वह सम्मोहन, 
बीते कुछ दिन, रहा भ्रम और संशय, 
सुनो मन अब यह कर लो निश्चय,
न होगे विचलित,मिले जय-पराजय । 

क्या स्वप्न थे वह प्रणय निवेदन,
अभिसार वह था ,कल्पना का विषय,
सुनो मन अब यह कर लो निश्चय,
न होगे विचलित,मिले जय-पराजय । 

सामयिक मनो-भँवर था अति-विकट, 
सदैव आन्दोलित रहा सुकोमल ह्रदय, 
सुनो मन अब यह कर लो निश्चय,
न होगे विचलित,मिले जय-पराजय । 

सम्बन्धों के तड़ित-मायाजाल से,
स्थिर हुआ अब जाके परिचय,
सुनो मन अब यह कर लो निश्चय,
न होगे विचलित,मिले जय-पराजय । 

शांत हुआ,स्पष्ट हो गया,
उस करबद्ध निवेदन का आशय, 
सुनो मन अब यह कर लो निश्चय,
न होगे विचलित,मिले जय-पराजय । 

तब भी स्त्रवित रक्त-बिंदु का है नाद, 
अहर्निश तुम हो प्रफुल्लित, रहो निरामय, 
सुनो मन अब यह कर लो निश्चय,
न होगे विचलित,मिले जय-पराजय ।  " 

( यह कविता फेसबुक पर दिनांक 19 जून 2013 को प्रकाशित की थी, चित्र: साभार - गूगल छवियाँ )

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