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बुधवार, 31 दिसंबर 2014

बस दो हाइकु


इस दिसम्बर ज्यादा कुछ लिख नहीं पाया, जो थोड़ा-बहुत लिखा उसको यहाँ पर प्रकाशित कर नहीं पाया ।  आज 2014 ई. का आख़िरी दिन है तो बस दो हाइकु  आपकी सेवा में प्रस्तुत करता हूँ :





* इसी दिसम्बर पेशावर में जघन्य हत्याकांड हुआ , दहशतगर्दी ने बचपन को तहस-नहस कर डाला यह पहला हाइकु उस पीड़ा के घावों को सहलाता हुआ  :-

" मासूम मर
दहशत जबर
है पेशावर  " 

* जाते हुए साल की विदाई और आने वाले साल की शुभकामनायें स्वीकार करें  :- 


" बदले अंक 
यथावत सशंक 
उखाड़ो डंक  " 



गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

सेवंती

( एक कविता और चंद अशआर )



सेवंती

जरुर तुमने वहाँ मुस्कान बोई होगी 
जो यह सेवंती इस बार 
बेहिसाब फूली है
पात-पात कली झूली है
और जब तुम हँसी होगी 
तो नाजुक कलियाँ खिलने से 
खुद को ना रोक पायी होंगी  

***

कुछ फुटकर अशआर 

( 1 ) 


जड़ें गहरी पैवस्त हैं जमीन में
तलाश अपने आसमान की है

***

( 2 )


महकते हैं ताउम्र रहें जो किस्से अधूरे 
मुरझा गये वो जो किस्से हो गये पूरे

***

( 3 )


तू भी गड्डी की तरह नखरे खूब दिखाती है 
निन्यानवे तो कभी एक सौ एक हो जाती है

***

( 4 )


जिन्दगी कुछ यूँ किसी के हवाले की है 
हमने अपने ही कातिल की जमानत ली है

***

 © ‪‎अमित कुमार नेमा‬